Share Market Analysis Methods

भारतीय शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने के लिए आम तौर पर चार प्रमुख प्रकार के विश्लेषण इस्तेमाल किए जाते हैं। ये विश्लेषण एक-दूसरे से अलग दृष्टिकोण और समय सीमा के आधार पर फैसले लेने में मदद करते हैं। थोड़ा-सा यह जानना जरूरी है कि हर विश्लेषण का अपना महत्व और इस्तेमाल होता है। इन चारों प्रकारों के विश्लेषण का सरल और स्पष्ट विवेचना  किया गया है:

Fundamental Analysis (मौलिक विश्लेषण)  

इसका मूल मकसद कंपनी की असली आर्थिक स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को समझना होता है। इसके तहत कंपनी के वित्तीय दस्तावेज़ों जैसे बैलेंस शीट, लाभ-हानि खाता, नकदी प्रवाह आदि का गहराई से अध्ययन किया जाता है। साथ ही, वित्तीय अनुपात जैसे P/E, P/B, ROE, और debt-to-equity अनुपात को देखा जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि लंबी अवधि के निवेशक या पोजीशनल ट्रेडर, जो मजबूत या कम मूल्यांकित कंपनियों को खोजते हैं, इन्हें बेहतर तरीके से पहचान पाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप किसी कंपनी की पांच साल की आय में निरंतर वृद्धि देख रहे हैं या उद्योग के औसत P/E अनुपात के साथ उसकी तुलना कर रहे हैं, तो यह समझ में आता है कि कंपनी का मूल्यांकन कैसा है।

Technical Analysis (तकनीकी विश्लेषण )  

यह विश्लेषण पुराने भावों, ट्रेडिंग वॉल्यूम और चार्ट पैटर्न की मदद से भविष्य के भावों का अंदाजा लगाता है। मानना यह है कि बाजार की सारी जानकारी पहले ही स्टॉक के दाम में शामिल होती है। इसमें (candlestick, line, bar chat), indicators  (MACD, RSI, Bollinger Bands, Moving Averages) जैसे संकेतक काम आते हैं। साथ ही, ट्रेड लाइन, सपोर्ट और रेसिस्टेंस लेवल, और कुछ पैटर्न जैसे (head and shoulders, triangles) का भी विश्लेषण किया जाता है। यह उन ट्रेडर्स के लिए ज्यादा कारगर होता है, जो इंट्राडे या स्विंग ट्रेडिंग करते हैं, यानी थोड़े समय के लिए खरीद और बिक्री करते हैं, सही समय पर। एक उदाहरण के तौर पर, RSI से ओवरबॉट या ओवरसोल्ड स्थिति पता लगाना या MACD क्रॉसओवर से ट्रेंड की पुष्टि करना।

Quantitative Analysis (मात्रात्मक विश्लेषण)  

यह हिस्सा गणित और सांख्यिकीय डाटा पर आधारित होता है। इसमें मौलिक और तकनीकी दोनों प्रकार के तत्त्व शामिल हो सकते हैं, लेकिन ज्यादा ध्यान संकलित और विश्लेषित आँकड़ों पर रहता है। EPS, P/E अनुपात या statistical models जैसे टूल्स इस्तेमाल किए जाते हैं। एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग प्रणाली इस विश्लेषण का खास हिस्सा है, जो कंप्यूटर प्रोग्रामों के माध्यम से स्वचालित ट्रेडिंग करता है। यह तरीका हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग या स्कैल्पिंग के लिए तो बड़ा उपयोगी है। उदाहरण के रूप में, स्टॉक स्क्रीनर का इस्तेमाल करके EPS वृद्धि या वैरिएंस जैसे मापदंडों की मदद से स्टॉक्स चुनना।

Sentimental Analysis (भावनात्मक विश्लेषण)  

यह थोड़ा अलग तरीका है। इसका मकसद बाजार की मानसिक स्थिति और निवेशकों की भावना को समझना होता है। इसमें समाचार, सोशल मीडिया पर हो रही चर्चाओं, निवेशक सर्वेक्षण और FII/DII activity व्यावहारिक गतिविधियों को देखा जाता है। खासतौर पर उन ट्रेडर्स के लिए यह उपयोगी होता है, जो जल्दी प्रतिक्रिया देना चाहते हैं, जैसे नीति बदलाव, आय रिपोर्ट या वैश्विक घटनाओं के बाद। उदाहरण के रूप में, किसी कंपनी की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर हो रही प्रतिक्रियाओं या खबरों से यह अंदाजा लगाना कि बाजार किस दिशा में जा सकता है।

तो सवाल उठता है—कौन सा विश्लेषण चुनना चाहिए? सच कहूं तो, यह पूरी तरह आपके ट्रेडिंग स्ट्रैटजी, समय सीमा, और जोखिम सहनशीलता पर निर्भर करता है। कभी-कभी एक से अधिक विश्लेषण का मिश्रण भी बेहतर परिणाम देता है। इसलिए, इन्हें समझें, पर अपने निवेश के उद्देश्यों के हिसाब से चुनें। ऐसे तो हर किस्म का विश्लेषण अपने हिसाब से काम का है, बस जरूरत और परिस्थिति देखकर इस्तेमाल करें।

अल्पकालिक ट्रेडिंग (इंट्राडे, स्कैल्पिंग, स्विंग): तकनीकी और भावनात्मक विश्लेषण तेजी से निर्णय लेने के लिए बेहतर हैं।

लंबी अवधि की ट्रेडिंग (पोजीशनल, दीर्घकालिक निवेश): मौलिक विश्लेषण, और कभी-कभी मात्रात्मक विश्लेषण, कंपनी की वृद्धि क्षमता का आकलन करने के लिए उपयुक्त है।

संयुक्त दृष्टिकोण: कई व्यापारी इन विश्लेषणों को मिलाकर उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, मौलिक विश्लेषण से मजबूत स्टॉक चुनना और तकनीकी विश्लेषण से खरीद-बिक्री का समय तय करना। 

महत्वपूर्ण बातें कोई भी विश्लेषण 100% सफलता की गारंटी नहीं देता। जोखिम प्रबंधन (जैसे स्टॉप-लॉस ऑर्डर) और विभिन्न विश्लेषणों का संयोजन महत्वपूर्ण है।स्टॉक स्क्रीनर (जैसे Screener.in, StockEdge) विश्लेषण को आसान बनाते हैं।

ट्रेडिंग से पहले हमेशा गहन अध्ययन करें और वित्तीय विशेषज्ञों से सलाह लें, क्योंकि शेयर बाजार में जोखिम होता है।

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